Wednesday, February 27, 2013

हड़ताल के मायने !----------------अजय स्वामी

क्या हडताल रस्म अदायगी बन गई है?
लाल झंडे के साथ कांग्रेस का तिरंगा-हड़ताल के दिन लुधियाना में माईक पर इंटक नेता गुरजीत सिंह जगपाल फोटो-रेक्टर कथूरिया 
इन्कलाब के नारे लगते दशकों गुज़र गए।नारे लगाने वाले बहुत से लोग बूढ़े हो गए और कई इस दुनिया से रुखसत भी हो गए। इन्कलाब दूर होता गया और जिस पूंजीवाद के खिलाफ आन्दोलन चलते रहे वह मजबूत होता महसूस हुआ। जिनके घर परिवार लाल झंडे को समर्पित हुआ करते थे अब उनमें से बहुत से लोगों की संतानें खुद को इन आंदोलनों से भी दूर कर चुकी हैं और इस वाद से भी। नई पीढी क्रांति के इस रास्ते और ढंग तरीके से अब निराश हुई लगती है। आखिर कौन है ज़िम्मेदार? कुछ इशारा दे रहे हैं हस्तक्षेप में अजय स्वामी। लीजिये आप भी देखिये उनका आलेख।--रेक्टर कथूरिया 
सभी केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें किसी न किसी चुनावबाज पार्टी से जुड़ी हैं !
लेखक अजय स्वामी 
हड़ताल के मायने !अजय स्वामी
20-21 फरवरी को 11 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने देशव्यापी हड़ताल की, जिसका मिला-जुला असर रहा। लेकिन दो दिवसीय हड़ताल ने कई सवाल हमारे सामने उपस्थित किये हैं मजदूर आन्दोलन से जुड़े ज्यादातर लोग जानते हैं कि हड़ताल मजदूरों का कारगार हथियार है इसलिये हड़ताल का इस्तेमाल सही उद्देश्य और सही ताकत के साथ किया जाना चाहिये।
आइये पहला हम मौजूद ट्रेड यूनियन आन्दोलन के उद्देश्य पर नजर डालते हैं। पिछले दो दशक से उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों का विरोध करने के उद्देश्य से केन्द्रीय ट्रेड यूनियन सालाना देशव्यापी बन्द की रस्म अदायगी करती हैं ये सभी केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें किसी न किसी चुनावबाज पार्टी से जुड़ी हुयी हैं और इस विरोध का सबसे भद्दा मजाक यह है कि इन जन-विरोधी नीतियों को सरेआम लागू करने वाली काँग्रेस और बीजेपी से जुड़ी यूनियन भी हड़ताल में शामिल हैं वहीं मजदूरों के रहनुमाई का दावा करने वाले संसदीय वामपंथी इस नंपुसक विरोध से सरकार और पूँजीपतियों का हौसला बढ़ाने का ही काम करते हैं। असल में इस रस्म अदायगी का कुल मकसद होता है मजदूर वर्ग के आक्रोश पर पानी के छींटे मारना।
दूसरा, अगर हड़ताल में सही ताकत की बात की जाये तो श्रम मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2006 में 12 केन्द्रीय यूनियन के कुल सदस्य की संख्या 2.48 करोड़ थी। इसके अलावा सेवा संघ और स्वतंत्र यूनियन के सदस्य की संख्या जोड़ दी जाये तो ये कुल श्रमबल (46करोड़) का 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हैं जिसका मतलब है कि भारत के 90 प्रतिशत मजदूर ट्रेड यूनियन से जुड़े ही नहीं हैं। वहीं ये 10 प्रतिशत मजदूर भी सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों तथा निजी क्षेत्रों के कुछ बड़े उद्योगों में काम करने वाले संगाठित मजदूर हैं बाकि 90 प्रतिशत से ज्यादा असंगठित मजूदर आबादी अभी भी मजदूर आन्दोलन से जुड़ नहीं पायी है जबकि ये मजदूर सबसे अमानवीय परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं, इनके लिए कागजों पर दर्ज 260 श्रम कानून का कोई मतलब नहीं रहता है। इसलिए भारत के मजदूर आन्दोलन को सही दिशा और ताकतवर बनाने के लिए असंगठित मजदूरों को ईलाकाई और पेशों के आधार पर लामबन्द करना ही सबसे जरूरी कार्यभार में से एक हैं। (हस्तक्षेप में अजय स्वामी)
लेखक अजय स्वामी खुद भी ट्रेड यूनियन नेता हैं उनका डाक पता है 
अजय स्वामी, करावल नगर, दिल्ली

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